सरकार ने एक झटके में पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए. डीजल और रसोई गैस के दाम
वैसे ही ज़्यादा हैं, लेकिन अभी और बढ़ सकते हैं. सरकार को मालूम था कि देश
में इसका विरोध होगा, गुस्सा पैदा होगा, कुछ विपक्षी पार्टियां लकीर पीटने
के लिए आंदोलन की घोषणा करेंगी और सिंबोलिक आंदोलन भी होंगे, इसके बावजूद
उसने पेट्रोल के दाम 12 प्रतिशत से ज़्यादा बढ़ा दिए. सरकार को यह अच्छी तरह
से मालूम है कि देश के लोग चुनाव से पहले यानी वोट डालने के दिन से पहले
कोई भी निर्णायक लड़ाई नहीं लड़ेंगे और जिस तरह की हालत भारतीय जनता पार्टी
की है, उससे सरकार आश्वस्त है कि कोई बड़ा विरोध उसे नहीं झेलना पड़ेगा और वह
15 दिनों के भीतर फिर पुरानी पटरी के ऊपर चलने लगेगी और इसी तरह के अन्य
फैसले भी वह आसानी से कर लेगी.
सरकार बिल्कुल सही है, क्योंकि उसे इस बात का एहसास है कि अगले चुनाव
में भले ही कोई और पार्टी सत्ता में आए, लेकिन कांग्रेस की सीटें बढ़ेंगी,
इसके ऊपर प्रश्नवाचक चिन्ह लग गया है. इसलिए वह वे सारे काम कर डालना चाहती
है, जिनसे विदेशी पूंजीपतियों, खासकर अमेरिका एवं यूरोप को फायदा हो सकता
है. अभी बहुत सारे प्रहार झेलने के लिए हमें तैयार रहना चाहिए, क्योंकि
हमारे देश के प्रधानमंत्री अर्थशास्त्री हैं, लेकिन उनका अर्थशास्त्र
अमेरिकी पूंजीपतियों और भारतीय पूंजीपतियों के लिए इस्तेमाल होता है. हमारे
प्रधानमंत्री का अर्थशास्त्र हिंदुस्तान के ग़रीबों के लिए बिल्कुल बेकार
है, क्योंकि उनकी सूची में हिंदुस्तान का ग़रीब कहीं है ही नहीं. हमारे
प्रधानमंत्री ऐसे मंत्रिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं, जिसमें मंत्री भी
प्रधानमंत्री जैसे ही हैं. बेशर्मी के साथ मंत्री यह कहते हैं कि उन्हें भी
सब्सिडी मिल रही है, जिन्हें इसकी ज़रूरत नहीं है और देश के लोगों को
मुफ्त़खोरी की आदत पड़ गई है.
दरअसल, मुफ्त़खोर वह मंत्री है, जो यह बयान दे रहा है. उस बेवकूफ को यह
समझ में नहीं आता कि वह भारत सरकार का मंत्री है और अगर पेट्रोल एवं डीजल
का दाम बढ़ता है तो ढुलाई का दाम बढ़ेगा. पेट्रोल एवं डीजल का दाम बढ़ता है तो
हर चीज का दाम बढ़ेगा. खेती की लागत और बढ़ जाएगी. वैसे ही किसान को उसकी
लागत के हिसाब से फसल की क़ीमत नहीं मिलती. अब पेट्रोल एवं डीजल के बढ़े हुए
दाम की वजह से उसकी खेती और महंगी हो जाएगी. या तो वह खेती कम करेगा या खेत
बेचेगा या फिर आत्महत्या करेगा. वह बेशर्म मंत्री, जिसने यह बयान दिया कि
देश के लोगों को मुफ्त़खोरी की आदत पड़ गई है और पेट्रोल एवं डीजल के बढ़े
हुए दाम का असर ग़रीबों के ऊपर नहीं पड़ेगा, उसका सार्वजनिक रूप से अपमान
होना चाहिए.
मुफ्त़खोर वह मंत्री है, जो
यह बयान दे रहा है. उस बेवकूफ को यह समझ में नहीं आता कि वह भारत सरकार का
मंत्री है और अगर पेट्रोल एवं डीजल का दाम बढ़ता है तो ढुलाई का दाम बढ़ेगा.
पेट्रोल एवं डीजल का दाम बढ़ता है तो हर चीज का दाम बढ़ेगा. खेती की लागत और
बढ़ जाएगी. वैसे ही किसान को उसकी लागत के हिसाब से फसल की क़ीमत नहीं मिलती.
अब पेट्रोल एवं डीजल के बढ़े हुए दाम की वजह से उसकी खेती और महंगी हो
जाएगी. या तो वह खेती कम करेगा या खेत बेचेगा या फिर आत्महत्या करेगा.
इस देश का किसान आत्महत्या करता है तो उसे अ़खबारों और मीडिया में जगह
नहीं मिलती. ज़्यादातर किसान इसलिए आत्महत्या करते हैं, क्योंकि वे खेती के
लिए कर्ज लेते हैं और कर्ज लेकर की गई खेती उन्हें और बड़े कर्ज में डाल
देती है, क्योंकि उन्हें फसल की सही क़ीमत नहीं मिलती. उनका घर गिरवी हो
जाता है, उनके बच्चे पढ़ नहीं पाते, उनकी बेटियों की शादी नहीं हो पाती,
उनकी सामाजिक बेइज्जती होती है और तब उनके पास आत्महत्या के अलावा कोई चारा
नहीं रहता. उस किसान की जिंदगी को आत्महत्या की आग में झोंकने का काम
यूपीए सरकार ने किया है. कांग्रेस के सहयोगी ममता बनर्जी एवं अजीत सिंह
कहते हैं कि सरकार के अंदर रहकर मूल्य वृद्धि का विरोध करेंगे. यह कहते हुए
दोनों की ज़ुबान नहीं कांपी? आप उसी सरकार में हैं और यदि आपकी बात
प्रधानमंत्री नहीं सुनते तो आप सरकार में हैं क्यों? क्या प्रधानमंत्री ने
आपसे नहीं पूछा, क्या प्रधानमंत्री ने मंत्रिमंडल की राय के बिना यह ़फैसला
ले लिया कि पेट्रोल के दाम में इतनी बड़ी वृद्धि हो, जिसका असर हिंदुस्तान
में रहने वाले हर आदमी को झेलना पड़ेगा?
पेट्रोल के दाम में बढ़ोत्तरी का असर केवल स्कूटर और कार चलाने वालों पर
नहीं पड़ेगा. इसका असर हिंदुस्तान के हर नागरिक पर पड़ेगा, क्योंकि पेट्रोल
एवं डीजल सिंचाई और ढुलाई के सबसे बड़े साधन हैं. अ़फसोस इस बात का है कि
देश के लोग शायद अभी भी घड़े के और भरने का इंतज़ार कर रहे हैं. नौजवान खामोश
है. शायद सरकार में बैठे लोग या राजनीतिक दलों के लोग इस बात का इंतजार कर
रहे हैं कि वे जब सड़कों पर निकलें तो जनता उन्हें घेरे और उनके साथ
बदसलूकी करे. सरकार में बैठे लोग देश की जनता के सब्र की, धीरज की परीक्षा
लेना चाहते हैं.
सबको पता है कि सारी दुनिया में कच्चे तेल का दाम घटा है. तेल कंपनियां
कहती हैं कि उन्हें घाटा हो रहा है. तेल कंपनियां अपना हिसाब लोगों के
सामने क्यों नहीं रखतीं कि उन्हें कैसे घाटा हो रहा है. तेल कंपनियां
राजनीतिक आकाओं को पैसे पहुंचाने के साधन के रूप में तब्दील हो गई हैं. हम
सस्ता तेल बेचने वाले व्यापारियों में से भी जो महंगा तेल बेचता है, उससे
तेल खरीदते हैं और उसके बाद यहां पर उसमें कितना हिस्सा किसकी जेब में जाना
है, उसे जोड़कर देश में वह तेल यानी पेट्रोल एवं डीजल लोगों के पास पहुंचता
है.