करनाल
बढ़ती आबादी परिवहन के संसाधनों पर भारी पड़ रही है। वाहनों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि हर सड़क पर यातायात रेंगता नजर आता है, लेकिन जनता वाहनों पर लटककर सफर करने पर मजबूर है। कारण कुछ भी हो, लेकिन आबादी के लिहाज से ग्रामीण मार्गो पर न तो साधन बढ़ाए जा रहे हैं और न ही सड़कों में खास सुधार किया जा रहा। इस स्थिति के बीच गरीब जनता पिसने पर मजबूर है।
छात्रों के लिए परिवहन की समस्या सबसे ज्यादा है। जिनके कंधों पर देश का भविष्य है, वही इस परिस्थिति में साधनों पर बोझ बन गए हैं। स्कूली रिक्शा से लेकर बसों तक छात्रों को खचाखच लदे देखा जा सकता है। जिले के कई मार्ग ऐसे हैं, जहां छात्रों को मजबूरन बस पर मक्खियों की तरह चिपककर आना पड़ता है। रूटों पर निजी वाहनों की संख्या तो बहुत है, लेकिन जनसुविधा के लिए वाहनों की कमी है। जिले को मुख्यालय से जोड़ने वाले किसी भी मार्ग पर वाहनों को निर्धारित से अधिक सवारियां ढोते देखा जा सकता है।
करनाल-सालवन मार्ग पर बस असुविधा से छात्र, दैनिक यात्री और आमजन परेशान हैं। करनाल से सालवन तक इस मार्ग पर पड़ने वाले घोघड़ीपुर, बड़ौता, समालखा, बिर्चपुर, स्टोंडी, बीजना, गगसीना, मूनक, रेरकलां, डेरा पूर्बिया, बल्ला, मानपुरा, सालवन गांवों के हजारों लोग प्रतिदिन आवागमन करते हैं। उन गांवों के लिए इस मार्ग पर सहकारी समिति की मात्र तीन बसें चल रही हैं। बसों के अभाव में कॉलेज लाने वाले छात्र और यात्री छतों पर बैठने को मजबूर हैं। हैरानी की बात है कि देश का भविष्य माने जाने वाले छात्रों को इस असुविधा को लेकर अनेक बार रोड जाम कर गुस्से का इजहार करना पड़ा। बसों में अधिक भीड़ होने के कारण बस की छत पर बैठकर सफर करते समय पिछले साल दो छात्र जान गंवा चुके हैं। मरने वालों में एक छात्र बल्ला और एक बाल रांगड़ान गांव का था। करनाल-सालवन मार्ग पर बसों की संख्या बढ़ाने के लिउ उस रूट से लगने वाले सभी गांवों की ग्राम पंचायत अपना प्रस्ताव संबधित अधिकारियों को भेज चुकी हैं, लेकिन बावजूद इसके समस्या ज्यों की त्यों बरकरार है। करनाल से गढ़ीबीरबल, काछवा मार्ग, घरौंडा, इंद्री, जुंडला आदि मार्गो पर भी यही स्थिति है।
बढ़ती आबादी परिवहन के संसाधनों पर भारी पड़ रही है। वाहनों की संख्या इतनी बढ़ चुकी है कि हर सड़क पर यातायात रेंगता नजर आता है, लेकिन जनता वाहनों पर लटककर सफर करने पर मजबूर है। कारण कुछ भी हो, लेकिन आबादी के लिहाज से ग्रामीण मार्गो पर न तो साधन बढ़ाए जा रहे हैं और न ही सड़कों में खास सुधार किया जा रहा। इस स्थिति के बीच गरीब जनता पिसने पर मजबूर है।
छात्रों के लिए परिवहन की समस्या सबसे ज्यादा है। जिनके कंधों पर देश का भविष्य है, वही इस परिस्थिति में साधनों पर बोझ बन गए हैं। स्कूली रिक्शा से लेकर बसों तक छात्रों को खचाखच लदे देखा जा सकता है। जिले के कई मार्ग ऐसे हैं, जहां छात्रों को मजबूरन बस पर मक्खियों की तरह चिपककर आना पड़ता है। रूटों पर निजी वाहनों की संख्या तो बहुत है, लेकिन जनसुविधा के लिए वाहनों की कमी है। जिले को मुख्यालय से जोड़ने वाले किसी भी मार्ग पर वाहनों को निर्धारित से अधिक सवारियां ढोते देखा जा सकता है।
करनाल-सालवन मार्ग पर बस असुविधा से छात्र, दैनिक यात्री और आमजन परेशान हैं। करनाल से सालवन तक इस मार्ग पर पड़ने वाले घोघड़ीपुर, बड़ौता, समालखा, बिर्चपुर, स्टोंडी, बीजना, गगसीना, मूनक, रेरकलां, डेरा पूर्बिया, बल्ला, मानपुरा, सालवन गांवों के हजारों लोग प्रतिदिन आवागमन करते हैं। उन गांवों के लिए इस मार्ग पर सहकारी समिति की मात्र तीन बसें चल रही हैं। बसों के अभाव में कॉलेज लाने वाले छात्र और यात्री छतों पर बैठने को मजबूर हैं। हैरानी की बात है कि देश का भविष्य माने जाने वाले छात्रों को इस असुविधा को लेकर अनेक बार रोड जाम कर गुस्से का इजहार करना पड़ा। बसों में अधिक भीड़ होने के कारण बस की छत पर बैठकर सफर करते समय पिछले साल दो छात्र जान गंवा चुके हैं। मरने वालों में एक छात्र बल्ला और एक बाल रांगड़ान गांव का था। करनाल-सालवन मार्ग पर बसों की संख्या बढ़ाने के लिउ उस रूट से लगने वाले सभी गांवों की ग्राम पंचायत अपना प्रस्ताव संबधित अधिकारियों को भेज चुकी हैं, लेकिन बावजूद इसके समस्या ज्यों की त्यों बरकरार है। करनाल से गढ़ीबीरबल, काछवा मार्ग, घरौंडा, इंद्री, जुंडला आदि मार्गो पर भी यही स्थिति है।
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