घरौंडा (प्रवीन/तेजबीर)
यात्रियों की सुविधाओं के लिए वर्षो पहले स्थापित रेलवे स्टेशन जन सुविधा न होने के कारण आज स्वयं बीमार है। रेलवे स्टेशन पर जहां यात्रियों को गाडिय़ों के अभाव से जुझना पड़ रहा है। वहीं स्टेशन पर अनेक ऐसी खामियां है। जिससे यात्रियों को हर दिन परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
बसों की बजाए रेलों का किराया कम होने के कारण आज हर यात्री रेल में सफर करने की सोचता है लेकिन घरौंडा का रेलवे स्टेशन एक ऐसा स्टेशन है जहां मात्र दो चार गाडिय़ां रूकने के शिवाए कोई ओर गाड़ी नही रूकती है और जिसके कारण सैंकड़ों की तादाद् में दिल्ली और चंडीगढ़ की ओर जाने वाले यात्रियों को मजबूरन बसों या निजी वाहनों में धक्के खाने पड़ते है। यहां पर रेलों के ठहराव के लिए दैनिक रेल यात्री संघ पिछले काफी समय से इस जदोजहद् में लगे है कि इस स्टेशन पर हिमालय क्वीन, भटिंडा, उच्चाहार गाडि़य़ों का ठहराव होना चाहिए। जिसके लिए वे सांसद से लेकर रेल मंत्री तक का दरवाजा खटखटा चुके है। लेकिन यहां पर किसी भी गाड़ी का ठहराव नही हो पाया है। हालांकि उत्तर रेलवे की उच्च समिति की टीम में वीर सिंह पाल जैसे घरौंडा के स्थानीय निवासी सदस्य रह चुके है।
नेताओं द्वारा मात्र आश्वासनों के अलावा यात्रियों को ओर कुछ नही मिला है। अंग्रेजों के शासन काल में बने इस रेलवे स्टेशन पर करनाल व पानीपत की तरफ जाने के लिए जनता की सुविधाओं के लिए ऐसा कोई शहर नही बना हुआ है कि जहां यात्री गरमी या बरसात के मौसम में खड़े हो सके। रेलवे स्टेशन पर लाईट व पानी की व्यवस्था तो की गई है लेकिन उनका उपयोग न के बराबर है क्योंकि न तो लाईटे जलती है और न ही पानी के नल सही प्रकार से पानी नही देते। इसलिए लोगों ने पीने के पानी के लिए लोगों ने स्थाई तौर पर पानी के मटके रखे हुए है।
उत्तर रेलवे डेली पैसेंजर वेल्फेयर एसोसिएशन के प्रधान रणधीर शेखपूरा दैनिक यात्री दिनेश, राकेश, परमजीत, ईषाक, रोहताश, रामलाल, दिलजीत सिंह, प्रवीन कुमार, प्रदीप सैनी, प्रवीन कुमार, दिनानाथ, धर्मबीर सिंह, चिंटू, पंकज, विकास, अक्षय का कहना है कि सुबह के समय यहां पर दिल्ली की ओर जाने के लिए मात्र तीन गाडिय़ों का ठहराव है। इसके बाद दोपहर तक कोई भी ऐसी गाड़ी नही है जिसके यात्री दिल्ली की ओर जा सके। चंडीगढ़ की ओर जाने के लिए गाडिय़ां न के बराबर है।
सबसे ज्यादा बुरा हाल यहां पर सुबह आने वाले रेल यात्रियों का होता है क्योंकि यहां पर रेलवे स्टाफ की कमी के चलते टिकट खिडक़ी को गाड़ी आने से कुछ देर पहले ही खोला जाता है और यात्री धक्का मुक्की कर टिकट लेने की कोशिश करते है अनेक बार तो यात्री टिकट न मिलने के अभाव में बिना टिकट ही रेल में चढ़ जाते है। रेल यात्रियों का कहना है कि रेलवे कर्मचारी गाड़ी आने समय ही खिडक़ी खोलते है और ऐसे मे यात्री भगदड़ में टिकट प्राप्त करता है। और कई बार तो अनेक यात्रियों के खुल्ले पैसे टिकट देने वाले के पास ही रह जाते है जो यात्रियों को वापिस नही मिल पाते और जब यात्री खुल्ले पैसे की मांग करता है तो खिडक़ी पर कर्मचारी उनके साथ अभद्रता का व्यवहार करता है।
उत्तर रेलवे डेली पैसेंजर वेल्फेयर एसोसिएशन ने रेलवे स्टेशन पर गाडिय़ों के ठहराव व सुविधाओं की मांग की है।
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