Friday, September 2, 2011

पैस्टीसाइडस के ज्यादा प्रयोग से हो सकती है धरती बंजर


आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं इन्द्री उपमंडल के युवा किसान अनिल काम्बोज
इन्द्री सुरेश अनेजा
उपमंडल के गांव कलरी खालसा के युवा किसान अनिल काम्बोज का कहना है कि अगर किसान भाइयों ने यूरिया,डीएपी खादों एवं कीटनाशक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग करना खेतों में न छोड़ा तो आने वाले समय में धरती माता बंजर हो जायेगी। उन्होंने किसान भाइयों को सचेत करते हुए कहा कि हम आने वाली अपनी पीढ़ी के बारे में भी सोचे। अगर इसी तरह से इन पैस्टीसाइडस का प्रयोग हम करते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब हम खाने के अनाज के लिए भी मोहताज हो जायेंगे। 


कलरी खालसा गांव के युवा किसान अनिल पूरे हल्के में एकमात्र ऐसे किसान है जो अपनी सारी खेती योग्य भूमि में उगाई जाने वाली फ सलों में पिछले चार वर्षों से पैस्टीसाइडस का प्रयोग नहीं कर रहे हैं अपितु आर्गेनिक यानि प्राकृतिक तरीकों से तैयार खाद का प्रयोग कर दूसरे किसानों की उपेक्षा कम खर्च कर ज्यादा मुनाफ ा कमा रहे हैं। इस आर्गेनिक खेती के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि आर्गेनिक तरीकों से खेती करने की प्रेरणा उन्हें अपने बुजुर्गो से मिली है। उन्होंने बताया कि जब यूरिया जैसी खादें नहीं थी तब भी तो हमारे बुजुर्ग लोग खेती किया करते थे। इसी बात से उन्हें प्रेरणाा मिली कि वर्तमान में भी प्राकृतिक तरीकों को अपना कर खेती की जा सकती है। दूसरे पैस्टीसाइड का प्रयोग करके पैदा की गई फ सलों से होने वाले दुष्परिणामों से दुखी होकर भी उन्होंने आर्गेनिक खेती करने का मन बनाया। इसके लिए उन्होंने कई प्रदेशों में आर्गेनिक खेती कर रहे किसानों से विचार विमर्श भी किया। इसमें उन्हें महाराष्ट्र प्रदेश के सुभाष पालेकर से बहुत मदद मिली। सुभाष पालेकर पिछले दस वर्षों से आर्गेनिक खेती कर रहे हैं। वे खेतों में प्रयोग की जाने वाली आर्गेनिक खाद जीवअमृत के खोजनिर्माता भी हैं। अनिल ने बताया कि वे अपनी पैदावार में जीवअमृत की मदद से खेती कर रहे हैं। जीव अमृत के बारे में उन्होंने बताया कि यह एक प्रकार की देसी खाद है जिसे हर किसान खुद तैयार कर सकता हैं। इसके लिए दस किलो देसी गाय के गोबर में दस लिटर गौमूत्र,दो किलो देसी गुड़,दो किलो बेसन,आधा या एक किलो पीपल के पेड़ के नीचे की मिटटी को एक दो सौ लिटर वाले ड्रम में डालकर तथा बाकी पानी डालकर चार पांच दिन तक दिन में दो बार हिलायें। यह घोल जीवअमृत कहलाता है। इसको छिडक़ाव करके या पानी में डालकर इस्तेमाल किया जा सकता है। इस जीवअमृत का अगर किसी फसल में ज्यादा प्रयोग भी हो जाये तो भी इसका कोई नुकसान नहीं है। न ही इससे फ सल का कोई नुकसान होता है। उन्होंने बताया कि गेंहू,धान की जो देसी किस्में लुप्त होती जा रही हैं उनकी पैदावार में जीवअमृत का प्रयोग करने से बड़े अच्छे परिणाम आये हैं। उन्होंने बताया कि उनकी फ सल दूसरे किसानों की उपेक्षा ज्यादा दामों पर बिकती है और उनके पास गेंहू की देसी किस्म एवं चावल की बुकिंग एडवांस में होती रहती है। 


उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि अगर कभी उनकी फ सल में कोई बीमारी आ जाती है तो भी वे कीटनाशक दवाइयां डालने की बजाय प्राकृतिक तरीकों से तैयार की गई दवाई ही डालते हैं। इस कीटनाशक घोल के बारे में उन्होंने बताया कि लगभग एक महीना पुरानी लस्सी को एक छोटे ड्रम में डालकर उसमें थोड़ी तांबे की तार डाल दें तथा कुछ मात्रा में नीम की पत्तियां,बंबोली,आक के पत्ते एवं गाय का गोबर डालकर रख दें। लगभग दस दिन बाद यह कीटनाशक अर्क तैयार हो जायेगा। इसका स्प्रे करने से फ सलों में पैदा हुई कोई भी बीमारी दूर हो जाती है। दीमक वगैरा के लिए वे हींग,फ टकरी को प्रयोग में लाते हैं। इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि जीवअमृत का प्रयोग वे गेंहू,जीरी के अलावा सब्जी,फ लों के पौधों जैसे केला,अमरूद,आम एवं आंवला,पत्थर चटट,अर्जुन इत्यादि पौधों के लिए भी प्रयोग में लाते हैं। अनिल ने बताया कि आर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की ओर से उन्हें कोई सहायता नहीं मिल रही है। केवलमात्र एक दो एनजीओ या हैफे ड,एनएचएम इत्यादि इस क्षेत्र में किसानों को प्रोत्साहित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि अभी हाल ही में आस्ट्रेलिया में आर्गेनिक खेती के बारे में जानकारी लेने के लिए गये थे। उन्होंने बताया कि विदेशों में किसान पैस्टीसाइडस का कम प्रयोग करते हैं और फ सलों की क्वालिटी पर ज्यादा ध्यान देते हैं। अब इसी तरह की सोच भारत के किसानों की भी हो गई हैं। अनिल ने कहा कि अगर सभी किसान भाई शुरूआती दौर में अपनी कुल भूमि में से एक आध एकड़ में आर्गेनिक तरीके से खेती कर इसका प्रयोग करके देखे तथा बाद में यही प्रक्रिया अपनी पूरे खेतों में करके देखें तो उन्हें बहुत कम कीटनाशक दवाओं,खादों इत्यादि का प्रयोग करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि अगर सरकार इस क्षेत्र में किसानों के लिए प्रशिक्षण शिविर इत्यादि लगाये तो इस आर्गेनिक खेती के क्षेत्र में काफ ी सफ लता मिल सकती हैं तथा किसानों का काफ ी पैसा जोकि पैस्टीसाइड,कीटनाशक दवाओं पर खर्च होता है उसे बचाया जा सकता है।

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