अंबाला शहर, पवन अनेजा
देश के वर्तमान हालातों से चिंतित कवियों को मौका मिलने की देर थी कि उन्होंने जमकर व्यंग बाण छोड़े। उन्हें यह मौका मिला आवाज साहित्यिक मंच द्वारा शहर में आयोजित काव्य गोष्ठी में। इसकी अध्यक्षता संवेदनशील एवं भावुक कवि शीश पाल भोला ने की।कवि ओम प्रकाश बनमाली ने देश के राजनेताओं और अफसरों की मानसिकता पर चोट करते हुए कहा कि 'यहां दूध के प्यालों पर बिल्लियों के पहरे हैं, शैतानों के यहां फरिश्तों जैसे चेहरे हैं'। इस अवसर पर देश में बढ़ रही महंगाई व आतंकवाद के साथ कई अन्य विषयों पर शायरों व कवियों ने विचार व्यक्त किए। राम सहाय जोशी ने देश में बढ़ रही महंगाई पर कविता पढ़ी। उन्होंने कहा 'लगता है देश में पूर्ण महंगाई का राज है, होता जाता है दाने-दाने को निर्धन मोहताज है' ।
चंडीगढ़ से आए देवी दयाल सैनी ने अपना दर्द कुछ यूं बयान किया 'दिल का दर्द दिल में छुपाया, फिर भी आंख से ना आंसू आया, गम के सागर में डूबे रहे हम, फिर किसी कश्ती को पार लगाया'। अश्क अंबालवी ने कहा 'लाख मजबूर हो इंसान कोई बात नहीं, सर पर लेकिन किसी कमजर्फ का अहसान ना हो'। गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे शीश पाल भोला ने आतंकवाद पर कविता पढ़ी जिसके बोल थे 'आतंकवाद का कोई पांव नहीं होता, जिस तरह खानाबदोशों को कोई गांव नहीं होता'। सतपाल सभ्रवाल की बानगी देखिए 'फानूस हो जब आप जैसे चिरागों के वो चिराग क्यों कर टिमटिमाएंगे, लाख चलें आंधियां व बिजलियां जेरेसाया आपके वो जगमगाते जाएंगे'। कृष्ण अवतार सूरी के इस ख्याल को भी सराहा गया 'मौसमे गुल की तरह हैं चंद रोज जिंगदी, बाहरों में भी फिजां का ख्याल लिए चलो'। काव्य गोष्ठी में लगभग दो दर्जन कवियों ने अपनी रचनाएं पढ़ीं। इस अवसर पर मंच के संस्थापक एवं चेयरमैन राजेश गुप्ता को मंच की ओर से दोशाला देकर सम्मानित किया गया।
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