बहादुरगढ़
शुरुआती दौर में खास लोगों का स्टेटस सिंबल रहा मोबाइल, अब आम आदमी की मुट्ठी में आ चुका है। उपभोक्ता लगातार कई घंटे फोन का इस्तेमाल करते है, परंतु इसके नुकसान से अनभिज्ञ है। समय रहते सचेत न हों तो कान के अनेक रोगों का शिकार होना पड़ सकता है। यह स्थिति बहरेपन तक भी पहुंचा सकती है। एक निजी कंपनी में कार्यरत रमेश कुमार ने कहा कि लगभग दो वर्षो से मार्केटिंग जॉब में मोबाइल फोन के लगातार कई घंटे इस्तेमाल करने से उसकी बायें कान की 75 प्रतिशत सुनने की शक्ति खत्म हो चुकी है और कान रोग की स्थिति इतनी गंभीर हो गई है कि अब वे डिजिटल हियरिंग मशीन लगाने पर विवश है, जिसकी कीमत लगभग 20 हजार रुपये है। मोबाइल फोन उपभोक्ता अमित गुप्ता ने बताया कि अपने दोस्तों से लगातार बात करते-करते अब उनके कानों में दर्द होने लगा है और वे चिकित्सक की देखरेख में अपना इलाज कराने में जुटे है। रेलवे रोड पर क्लीनिक चला रहे डॉ. एसके मलिक का कहना है कि वैसे कानों का रोग जन्मजात होता था, लेकिन आज तेज ध्वनि में आतिशबाजी, डीजे की तेज आवाज, कारों में तेज आवाज से बजने वाली सी.डी. प्लेयर सिस्टम और खास तौर पर कई-कई घंटे मोबाइल फोन इस्तेमाल से कानों के रोगियों की संख्या बढ़ रही है। एक स्वस्थ इंसान के सुनने की शक्ति मेडिकल साइंस पैमाने अनुसार 20 से 30 ग्राम फ्रीक्वेंसी तक होती है। अगर ये इस पैमाने से बढ़ जाती है, तो उस अनुसार धीरे-धीरे सुनने की शक्ति क्षमता कम होती चली जाती है। इंसान की तीन हड्िडयों मिलीयस, इंकस और स्टेपिज में से एक भी हड्डी प्रभावित होने से इसका प्रभाव कानों तथा ब्रेन पर पड़ता है। मोबाइल को वाइब्रेशन पर रखकर इसका इस्तेमाल करना सबसे ज्यादा खतरनाक है, क्योंकि वाइब्रेशन का इफेक्ट सीधा ब्रेन को नुकसान पहुंचाता है।
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