Sunday, July 31, 2011

बाहर की जेल परमात्मा के कानून की है:शाश्वतानंद गिरि जी महाराज


करनाल विजय काम्बोज 
 श्री 1008 महामंडलेश्वर डा. शाश्वतानंद गिरि जी महाराज ने कहा है कि मनुष्य को किसी क्रिया पर प्रतिक्रिया करने की बजाय विवेक का प्रयोग करना चाहिए। इससे किसी भी तरह का विवाद नहीं होगा। प्रतिक्रिया अपराध करवाती है। इससे बचकर ही अपराध रोका जा सकता है। यदि द्रौपदी दुर्योधन के इंदप्रस्थ महल के तालाब में गिरने की घटना पर न हंसती तो महाभारत न होता।


लेखक मुंशी प्रेमचंद की जयंती  पर जिला जेल में बंदियों को प्रवचन करते हुए महाराज ने कहा कि मनुष्य जेल रूपी संसार में रह रहा है। कुछ जेल के अंदर रहकर बंधन में बंधे हैं तो कुछ बाहर बंधन में बंधे हैं। जेल के बाहर तो स्वयं बंधन में बंधते हैं, जबकि जेल के अंदर बंधन में बांधने पड़ते हैं। जेल में सरकार का कानून है, जबकि बाहर की जेल परमात्मा के कानून की है। सिर्फ कर्म के कारण ही बाहर व अंदर की जेल में अंतर है। मनुष्य के जीवन में संभावनाएं हैं, जबकि अन्य प्राणी ज्यों के त्यों हैं। भगवान के पास 84 लाख सूट हैं, हर प्राणी को कर्म के हिसाब से सूट दिया जाता है। कर्म योनि के लिए हमें मनुष्य का सूट मिला है, जबकि भोग योनि के लिए अलग अलग प्राणी को सूट दिए गए है। शरीर को कंट्रोल करने के लिए बुद्धि है। जेल अधीक्षक शेर सिंह, अनिल गुप्ता तरावड़ी, संस्कृत कर्मी राजीव रंजन, डीएसपी संजीव बुधवार, डीएसपी रेशम सिंह ने महाराज का जेल में पहुंचने पर स्वागत किया। जेल अधीक्षक ने महाराज से आग्रह किया कि वे भविष्य में भी जेल परिसर में आकर न केवल कैदियों को तनावमुक्त रहने की शिक्षा दें। संस्कृत कर्मी राजीव रंजन ने जेल में किताबें लिख रहे नाजिम की कविताओं को प्रकाशित करवाने का वायदा किया।

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