Sunday, August 21, 2011

बिगड़ी बुद्धि को संवारता है सत्संग : स्वामी ज्ञानानंद


करनाल  विजय काम्बोज 
  गीता मनीषी स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि सत्संग के श्रवण से बुद्धि और आत्मा निर्मल होती है। उन्होंने जोर देकर कहा कि बार-बार सत्संग सुनने से बिगड़ी हुई बुद्धि भी संवर जाती है। वह स्थानीय पंजाबी धर्मशाला में श्री सनातन धर्म सभा द्वारा आयोजित चार दिवसीय श्रीकृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव में श्रद्धालुओं को सम्बोधित कर रहे थे। इस कार्यक्रम का उद्घाटन करनाल के एस.डी.एम. मुकुल कुमार ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। इस अवसर पर करनाल नगर सुधार मंडल के पूर्व चेयरमैन राकेश नागपाल बतौर कार्यक्रम कार्यक्रम अध्यक्ष शामिल हुए जबकि महावीर इंडस्ट्रीज के एम.डी. दौलत राम खुराना तथा समाजसेवी अमरजीत वधवा विशिष्ट अतिथि के तौर पर धार्मिक समारोह में शामिल हुए।
स्वामी ज्ञानानंद जी महाराज ने कहा कि सत्संग प्रत्येक आत्मा को नया भाव और प्रेरणा देता है। सत्संग के श्रवण से जीवन संवर जाता है। उन्होंने श्रद्धालुओं को सत्संग का ज्ञान सुनाते हुए कहा कि तीनों लोकों में केवल पृथ्वी ही ऐसा लोक है, जहां केवल सत्संग का श्रवण होता है। उन्होंने कहा कि पशु, पक्षी व अन्य जीव धरती पर होते हुए भी सत्संग का श्रवण नहीं कर सकते और न ही अपना जीवन संवार सकते हैं लेकिन 84 लाख योनियों में केवल मनुष्य जन्म ही ऐसा है जो सत्संग के श्रवण का लाभ उठा सकता है। उन्होंने यहां भगवान श्रीराम तथा भगवान श्री हनुमान का उदाहरण पेश करते हुए कहा कि जब भगवान श्रीराम धरती पर किए गए कार्यों को पूरा कर बैकुंठ धाम को जाने लगे तो भगवान श्रीराम ने श्री हनुमान को यह कहा कि तुम उदास क्यों हो? तब भगवान हनुमान बोले कि हे ईश्वर, कि क्या बैकुंठ धाम में सत्संग सुनने को मिलेगा। हनुमान जी के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान श्रीराम बोले कि बैकुंठ धाम में तो हमारे पार्षद होंगे और वहां केवल आनंद होगा। उन्होंने हनुमान जी से पूछा कि वह ऐसा सवाल क्यों कर रहे हैं, के जवाब में हनुमान बोले कि उन्हें तो केवल भगवान श्रीराम के सत्संग श्रवण का आनंद लेना है। तब राम जी बोले कि बैकुंठ धाम में सत्संग तो नहीं होगा। इसके बाद हनुमान जी ने भगवान श्रीराम जी के साथ बैकुंठ धाम में जाने से मना कर दिया। तब हनुमान जी ने कहा था कि मैं तो केवल वहीं रूकूंगा जहां मेरे प्रिय भगवान श्रीराम का सत्संग होगा और मैं उसे श्रवण करूंगा। स्वामी ज्ञानानंद जी ने कहा कि किसी कारण भगवान हनुमान हर लोक में धरती पर विराजमान होते हैं। उन्होंने भक्त कबीर जी का उदाहरण भी प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि जन्म लेने के साथ ही उन्होंने अपनी मनुष्य रूपी चादर भगवान के सत्संग में रंग दी। जब अंतिम समय उनके प्राण निकलने लगे तो उनके पुत्र ने उनकी आंखों में आंसू देखे और अपने पिता से बोले कि वह मौत से डर गए हैं क्या। जवाब में कबीर जी ने कहा कि वह मौत से नहीं घबरा रहे बल्कि इस बात से घबरा रहे हैं कि मरने के बाद वह भले ही बैकुंठ तो चले जाएंगे लेकिन भगवान का सत्संग सुनने से वंचित हो जाएंगे। उन्होंने उपदेश देते हुए कहा कि सत्संग एक ऐसा मूलमंत्र है जो मनुष्य को बैकुंठ धाम तक ले जाता है। सत्संग ही एक ऐसा माध्यम है, जिससे व्यक्ति के विचार स्वच्छ और निर्मल होते हैं और अच्छे कार्यों को दिशा और गति मिलती है। इस मौके पर समाजसेवी अमरजीत वधवा ने स्वामी ज्ञानानंद जी की प्रेरणा से तरावड़ी की श्री सनातन धर्म सभा को मंदिर निर्माण के लिए 21 मरले भूमि तथा 2 लाख 21 हजार रुपए की राशि देने की घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन भारत विकास परिषद के प्रांतीय अध्यक्ष प्रो. जोगेंद्र मदान ने किया। इस मौके पर सनातन धर्म सभा के अध्यक्ष लक्ष्मण दास सेठी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष सतीश गुलाटी, महासचिव हरीश चावला, नई अनाज मंडी के अध्यक्ष वीरेंद्र बंसल, उद्योगपति पंकज गोयल, संरक्षक रमेश नारंग, कृष्ण लाल रहेजा, डा. पवन अरोड़ा, डा. प्रेम तनेजा, यशपाल शर्मा, उपाध्यक्ष लालचंद मुंजाल, वेद सलूजा, कोषाध्यक्ष सुरेश चावला, सचिव सुरेंद्र कुकरेजा, मीडिया प्रभारी फतेहचंद चावला, कानूनी सलाहकार हरीश एडवोकेट, समाजसेवी हरीश पाहूजा, महेंद्र चावला, गुलशन मुंजाल, विपिन छाबड़ा, ओमप्रकाश मल्होत्रा, आत्मप्रकाश, तरसेम, कृष्ण लाल, सुरेंद्र खुराना, रङ्क्षवद्र सरदाना, हरीश पोपली, शाम कटारिया, देवराज, विजय गुलाटी, नरेश जुनेजा समेत सैंकड़ों श्रद्धालु मौजूद थे।



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