Saturday, August 6, 2011

100-100 गज के प्लाट बने प्रशासन के लिए बने सिरदर्द


प्रदीप आर्य कुरुक्षेत्र 
 सरकार द्वारा आर्थिक तौर पर कमजोर वर्ग को 100-100 गज के प्लाट देने की नीति का प्रचार इतना जोर शोर से नहीं हुआ जितना प्रचार उन प्लाटों के वितरण में लग रहे आरोपों को लेकर हो रहा है। इस योजना से सरकार को दूरगामी परिणाम मिलने की संभावना थी, पर जिस प्रकार सरपंचों व बी. डी. ओ पर प्लाटों की बंदरबांट के आरोप आये दिन लग रहे हैं, उससे लगता है कि यह कल्याणकारी नीति सरकार के खिलाफ माहौल बनाने में ज्यादा कारगर होती नजर आ रही है।
 कुरुक्षेत्र के लघु सचिवालय के सामने होने वाले अधिकतर प्रदर्शन 100-100 गज के प्लाट ना मिलने को लेकर या फिर अपनों को लाभ पंहुचाने के आरोपों को लेकर किये जा रहे हैं। अपनी मांगों को लेकर प्रशासन के पास जाना समझ में आता है। लेकिन नारेबाजी करना, सरकार के पुतले फूंकना, धरना देना और सडक़ जाम करना किन परिस्थितियों की देन है, सरकार के लिए यह जानना और समझकर बनती जा रही पर परा और मानसिकता का समाधान करना अति आवश्यक हो गया है।
इन सबका जिम्मेवार  आखिर है कौन? आज यह यक्ष प्रश्न सब के सामने है। संविधान के अनुसार सरकार राज्य के कल्याण के लिए कार्य करती है। कोई भी सरकार हो कोई भी नीति यह सोचकर नहीं बनाती कि उस द्वारा बनाई गई नीति केवल उस सरकार के चाहने वालों को ही लाभ पंहुचाए। या सत्ताधारी पार्टी को वोट देने वालों को ही उस नीति या योजाना का लाभ मिले। ऐसा न तो कभी हुआ है और न ही व्यावहारिक तौर पर स भव है। यह हो सकता है कि उन नीति और योजनाओं का लाभ उठाने वाले भविष्य में उस पार्टी के समर्थक या मतदाता बन जाएं। सरकार द्वारा बनाई जाने वाली नीति और योजनाओं का प्रारुप ऐसा होना चाहिए जिस प्रकार वायु, सूर्य की रोशनी, चन्द्रमा की शीतलता कभी यह नहीं देखते कि उसका प्रभाव अमीर के यहां हो गरीब के यहां नहीं। साधन स पन्न और सक्षम व्यक्ति को उसका लाभ मिले पर निर्धन, कमजोर व्यक्ति उसका लाभ न ले पाये। मुख्यमन्त्री शपथ लेने के बाद केवल अपने मतदाताओं का मु यमन्त्री नहीं होता अपितु वह पूरे प्रदेश  का मुख्यमन्त्री होता है। अपने प्रदेश की जनता की समस्याओं का समाधान करना उनका दायित्त्व होता है। 
सरकार द्वारा जनहित में लागू की जाने वाली योजना का लाभ यदि पात्र को नहीं मिलता है तो उसकी नैतिक जि मेवारी प्रदेश की मुखिया की ही बनती है। प्रशासन का कोई हिस्सा अपने हित के लिए पद का दुरुपयोग करता है तो उस पर नियन्त्रण करना अति आवश्यक है। यदि प्रशासन का कोई अंग प्रदेश नेतृत्व के आदेशों की अवहेलना करता है तो इसका सीधा सा संदेश यह जाता है कि कहीं न कहीं नेतृत्व की पकड़ कमजोर है या फिर उस कड़ी से कभी ऐसा काम लिया गया होगा जो भ्रष्टाचार में सहयोगी रहा हो।
आज पूरे प्रदेश में प्लाटों के वितरण को लेकर या फिर वृद्धावस्था स मान पैंशन ना मिलने को लेकर प्रदर्शन किये जा रहे हैं। नैशनल हाइवे को जाम कर देने से कितने लोगों को परेशानी का सामना करना पड़ता है, यह अन्दाजा सहज ही लगाया जा सकता है। पिछले दिनों जिला कैथल मेंं बुजुर्गों ने भारी गर्मी में सडक़ पर लेटकर अपना विरोध जताना पड़ा, यह कितने शर्म की बात है। कुरुक्षेत्र में लाईओवर पर लगे जाम से नन्हें नन्हें स्कूली बच्चों का गर्मी के कारण किस कदर बुरा हाल था। इसकी भी किसी ने परवाह नहीं की। जनाक्रोश तब और बढ़ जाता है जब जनता की आवाज सुनने के लिए कोई प्रशासनिक अधिकारी अपने वातानुकूलित कार्यालय से बाहर निकलने की जहमत तक नहीं उठाता। 
समाज इस बात का पक्षधर कतई नहीं है कि हर बात पर प्रदर्शन किया जाए या धरना दिया जाए। जब कोई अधिकारी संवेदनाहीन हो जाता है तभी इस प्रकार की तनावपूर्ण परिस्थितियां जन्म लेती हैं।
हरियाणा में एक कहावत प्रचलित है कि गुड़ ना दे पर गुड़ जैसी बात तो कर। प्रशासन इस कहावत के भावार्थ को समझकर अपने व्यवहार में अपना लें तो स्थितियों को संभालना कोई बड़ा काम नहीं है।  वैसे भी हरियाणा की जनता न्यायप्रिय है। उसको मिलने वाला कोई लाभ उसे ना मिले वह संतोष कर लेगा, पर उसका हिस्सा काटकर जिसे नहीं मिलना चाहिए या फिर जो उसका पात्र नहीं है उसको दे दिया जाए तो इस भ्रष्टाचार और अन्याय को कतई बर्दास्त करने के लिए तैयार नही होता। यहीं से शुरु होती है बगावत की आवाज। 
सरकार को इसी भ्रष्ट तन्त्र को समझकर उसका निदान करने के लिए कठोर कदम उठाने की आश्यकता है। भले ही इस मुहिम में सत्तासीन व्यक्तियों के अपने भी क्यों न हों सभी पर निष्पक्ष होकर कारवाही की जानी चाहिए। जिस दिन सरकार ऐसा कर लेगी तभी संविधान के अनुसार राज्य के लिए कल्याणकारी सरकार कहलायेगी। अन्यथा घोषणाएं भी होती रहेंगी, विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला भी जारी रहेगा।  एक दिन गीता के उपदेशानुसार परिवर्तन भी होगा। परिवर्तन संसार का नियम है।

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